भारत का अवलोकन

भारत दुनिया की सबसे पुरानी सभ्‍यताओं में से एक है, जो 4,000 से अधिक वर्षों से चली आ रही है और जिसने अनेक रीति-रिवाज़ों और परम्‍पराओं का संगम देखा है। यह देश की समृद्ध संस्‍कृति और विरासत का परिचायक है। आज़ादी के बाद 68 वर्षों में भारत ने सामाजिक और आर्थिक प्रगति की है। भारत कृषि में आत्‍मनिर्भर देश है और औद्योगीकरण में भी विश्व के चुने हुए देशों में भी इसकी गिनती की जाती है। यह उन देशों में से एक है, जो चाँद पर पहुँच चुके हैं और परमाणु शक्ति संपन्न हैं। भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग कि.मी. है, जो हिमाच्‍छादित हिमालय की बुलन्दियों से दक्षिण के विषुवतीय वर्षा वनों तक विस्तृत है। क्षेत्रफल में विश्‍व का सातवां बड़ा देश होने के कारण भारत एशिया महाद्वीप में अलग दिखायी देता है। इसकी सरहदें हिमालय पर्वत और समुद्रों ने बांधी है, जो इसे एक विशिष्‍ट भौगोलिक पहचान देते हैं। उत्तर में बृहत् हिमालय की पर्वत शृंखला से घिरा यह देश कर्क रेखा से आगे संकरा होता चला जाता है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर तथा दक्षिण में हिन्द महासागरइसकी सीमाओं का निर्धारण करते हैं।
उत्‍तरी गोलार्ध में स्थित भारत की मुख्‍यभूमि 8 डिग्री 4 मिनट और 37 डिग्री 6 मिनट उत्‍तरी अक्षांश और 68 डिग्री 7 मिनट तथा 97 डिग्री 25 मिनट पूर्वी देशान्‍तर के बीच स्थित है । उत्‍तर से दक्षिण तक इसकी अधिकतम लंबाई 3,214 कि.मी. और पूर्व से पश्चिम तक अधिकतम चौड़ाई 2,933 कि.मी. है। इसकी ज़मीनी सीमाओं की लंबाई लगभग 15,200 कि.मी. और तटरेखा की कुल लम्‍बाई 7,516.6 कि.मी है। यह उत्‍तर में हिमालय पर्वत, पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर तथा दक्षिण में हिंद महासागर से घिरा हुआ है।
अशोक के साम्राज्य की सीमा का मानचित्र
भारत एशिया महाद्वीप के दक्षिणी भाग में स्थित तीन प्रायद्वीपों में मध्यवर्ती और सबसे बड़ा प्रायद्वीप है। यह त्रिभुजाकार है। हिमालय पर्वत शृंखला को इस त्रिभुज का आधार औरकन्याकुमारी को उसका शीर्षबिन्दु कहा जा सकता है। इसके उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण मेंहिन्द महासागर स्थित है। ऊँचे-ऊँचे पर्वतों ने इसे उत्तर-पश्चिम में अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तानतथा उत्तर-पूर्व में म्यांमार से अलग कर दिया है। यह स्वतंत्र भौगोलिक इकाई है। प्राकृतिक दृष्टि से इसे तीन क्षेत्रों में विभक्त किया जा सकता है—हिमालय क्षेत्र, उत्तर का मैदान जिससे होकरसिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियाँ बहती हैं, दक्षिण का पठार, जिसे विंध्य पर्वतमाला उत्तर के मैदान से अलग करती है। भारत की विशाल जनसंख्या सात सौ पचास से अधिक [5] बोलियाँ बोलती है और संसार के सभी मुख्य धर्मों को मानने वाले यहाँ मिलते हैं। अंग्रेज़ी में भारत का नाम 'इंडिया' सिंधु के फ़ारसी रूपांतरण के आधार पर यूनानियों के द्वारा प्रचलित 'हंडस' नाम से पड़ा। सिन्धु का फ़ारसी में हिन्द, हन्द या हिन्दू हुआ। हिन्द का यूनानियों ने इन्दस किया जो बाद में 'इंडिया' हो गया। सिन्धु नदी को अंगेज़ी में आज भी 'इन्डस' ही कहते हैं। मूल रूप से इस देश का नाम प्रागैतिहासिक काल के राजा भरत[6] के आधार पर भारतवर्ष है किन्तु अधिकारिक नाम 'भारत' ही है। अब इसका क्षेत्रफल संकुचित हो गया है और इस प्रायद्वीप के दो छोटे-छोटे क्षेत्रों पाकिस्तान तथा बांग्लादेश को इससे पृथक करके शेष भू-भाग को भारत कहते हैं। 'हिन्दुस्थान' नाम सही तौर से केवल गंगा के उत्तरी मैदान के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है जहाँ हिन्दी बोली जाती है। इसे भारत अथवा इंडिया का पर्याय नहीं माना जा सकता।
सिन्धु घाटी
प्राचीन भारतीय साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि उसमें प्रतिबिम्बित जनजीवन में भौगोलिक चेतना का पूर्ण रूप से सन्निवेश है। इसका एकमात्र कारण यही हो सकता है कि हमारे पूर्वपुरुष अपने विशाल देश के प्रत्येक भाग से भली प्रकार परिचित थे तथा उनको भारत के बाहर के संसार का भी विस्तृत ज्ञान था। वाल्मीकि रामायण, महाभारत, पुराणादि ग्रंथों तथा कालिदास आदि महाकवियों की रचनाओं में प्राप्त भौगोलिक सामग्री की विपुलता इस बात की साक्षी है। वास्तव में प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति एकता के जिन सुदृढ़ सूत्रों में निबद्ध थी। उनमें से एक सूत्र भारतीयों की व्यापक भौगोलिक भावना भी थी जिसके द्वारा सारे भारत के विभिन्न स्थान - पर्वत, वन, नदी-नद, सरोवर, नगर और ग्राम उनके सांस्कृतिक एवं धार्मिक जीवन का अभिन्न अंग ही बन गए थे। वाल्मीकि, व्यास और कालिदास के लिए हिमालय से कन्याकुमारी और सिंधु से कामरूप तक भारत का कोई कोना अपरिचित या अजनबी नहीं था। प्रत्येक भू-भाग के निवासी, उनका रहन - सहन वहाँ के जीव -जंतु या वनस्पतियाँ और विशिष्ट दृश्यावली - ये सभी तथ्य इन महाकवियों और मनीषियों के लिए अपने ही और अपने घर के समान ही प्रिय एवं परिचित हैं। वाल्मीकि रामायण के किष्किंधाकाण्ड, महाभारत के वनपर्व और कालिदास के मेघदूत और रघुवंश के चतुर्थ एवं त्रयोदश सर्गों के अध्ययन से उपर्युक्त धारणा की पुष्टि होती है। इतने प्राचीन काल में जब भारत में यातायात की सुविधाएँ अपेक्षाकृत बहुत कम थीं। भारतीयों की स्वदेश विषयक भौगोलिक एकता की भावना को जगाए रखने में इन राष्ट्रीय एवं लोकप्रिय कविगणों ने जो महत्त्वपूर्ण योग दिया था उसका मूल्य आँकना भी हमारे लिए आज सम्भव नहीं है। भारत की आधारभूत एकता उसकी विशिष्ट संस्कृति तथा सभ्यता पर आधारित है। यह इस बात से प्रकट है कि हिन्दू धर्म सारे देश में फैला हुआ है। संस्कृत को सब देवभाषा स्वीकार करते हैं। जिन सात नदियों को पवित्र माना जाता है उनमें सिंधु पंजाब में बहती है और कावेरी दक्षिण में, इसी प्रकार जिन सात पुरियों को पवित्र माना जाता है उनमें हरिद्वार उत्तर प्रदेश में स्थित है और कांचीसुदूर दक्षिण में। भारत के सभी राजाओं की आकांक्षा रही है कि उनके राज्य का विस्तार आसेतु हिमालय हो। परन्तु इतने बड़े देश को जो वास्तव में एक उपमहाद्वीप है और क्षेत्रफल में पश्चिमी रूस को छोड़कर सारे यूरोप के बराबर है, एक राजनीतिक इकाई बनाये रखना अत्यन्त कठिन था। वास्तव में उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में ब्रिटिश शासकों की स्थापना से पूर्व सारा देश बहुत थोड़े काल को छोड़कर, कभी एक साम्राज्य के अंतर्गत नहीं रहा। ब्रिटिश काल में सारे देश में एक समान शासन व्यवस्था करके तथा अंग्रेज़ों को सारे देश में प्रशासन और शिक्षा की समान भाषा बनाकर पूरे देश को एक राजनीतिक इकाई बना दिया गया। परन्तु यह एकता एक शताब्दी के अन्दर ही भंग हो गयी। 1947 ई. में जब भारत स्वाधीन हुआ, उसे विभाजित करके सिंधु, उत्तर पश्चिमी सीमाप्रान्त, पश्चिमी पंजाब (यह भाग अब पाकिस्तान कहलाता है), पूर्वी तथा उत्तरी बंगाल (यह भाग अब बांग्लादेश कहलाता है) उससे अलग कर दिया गया।