भारत का विशाल क्षेत्र भौतिक दृष्टि से सर्वत्र समान नहीं है बल्कि इसके उच्चावचन में काफ़ी विविधता पायी जाती है। इसमें कहीं पर तो उच्च पर्वत श्रेणियां हैं और कहीं पर विशाल मैदान। नदी घांटियाँ एवं पठारी भाग भी देश में विद्यमान हैं। यदि उत्तर में हिमालय जैसी नवीन पर्वत मालाएं स्थित हैं; तो अरावली, सतपुड़ा, विन्ध्याचल जैसी प्राचीन पर्वत श्रेणियाँ भी हैं। देश के कुल क्षेत्रफल के 10.7 प्रतिशत भाग पर उच्च पर्वत श्रेणियों का विस्तार पाया जाता है, जिनकी ऊंचाई समुद्र तट से 2,135 मी. या इसके अधिक है। समुद्र तट से 305 से 2,135 मी. तक की ऊंचाई वाली पहाड़ियाँ भी देश के 18.6 प्रतिशत भाग पर फैली हैं। इस प्रकार कुल पर्वतीय भाग 29.3 प्रतिशत है। समुद्र तट से 305 से 915 मीं तक ऊंचाई वाले पठारी भाग का विस्तार भी देश के 27.7 प्रतिशत क्षेत्र पर है, जबकि शेष 43.0 प्रतिशत पर विस्तृत मैदान पाये जाते हैं। उच्चावचन की दृष्टि से भारत को सामान्यतः चार प्राकृतिक या भौतिक भागों में वर्गीकृत किया जाता है, जो हैं:
- उत्तर का पर्वतीय एवं पहाड़ी प्रदेश
- उत्तर का विशाल मैदान
- प्रायद्वीपीय पठारी भाग
- समुद्र तटीय मैदान। पुनः थार का विशाल मरुस्थल तथा सागरीय भाग में स्थित द्वीप भी एक विशेष प्रकार का भौतिक स्वरूप प्रस्तुत करते हैं।
उत्तर का पर्वतीय एवं पहाड़ी प्रदेश
इस प्रदेश का हिमालय पर्वतीय प्रदेश के रूप में भी जाना जाता है, जो देश की उत्तर सीमा पर एक चाप के आकार में 2400 किमी. की लम्बाई में फैला है। इसका क्षेत्रफल लगभग 5 लाख वर्ग किमी है। इसका उद्गम पामीर की गाँठ से हुआ है। इसकी उत्पत्ति वस्तुतः एक भू-द्रोणी, जिसेटेथिस सागर कहते हैं, से हुई है। हिमालय पर्वत श्रेणी की कुल लम्बाई मकरान तट पर स्थित ग्वाडर से लेकर पूर्व में मिजों पहाड़ियों तक 2,400 किमी. है, जबकि इसकी चौड़ाई पश्चिम में 400 किमी और पूरब में 160 किमी. तक है। हिमालय की स्थलाकृतियों में मुख्यतः तीन लंबी और घुमावदार श्रेणियां हैं, जिनकी ऊंचाई दक्षिण से उत्तर की ओर क्रमशः बढ़ती जाती है। मंद गति के कारण इन्हें वर्तमान ऊंचाई को प्राप्त करने में 70 लाख वर्ष लगे हैं। भौतिक दृष्टि से हिमालय मे चार समान्तर श्रेणियां मिलती हैं जिनमें, सबसे उत्तर में ट्रांस अथवा तिब्बत हिमालय, उसके दक्षिण में क्रमशः महान अथवा आन्तरिक हिमालय, लघु अथवा मध्य हिमालय तथा उप अथवा शिवालिक श्रेणी स्थित हैं।
ट्रान्स अथवा तिब्बत हिमालय श्रेणी सबसे उत्तर में स्थित हैं। इसकी खोज सन् 1906 स्वैन महोदय ने की थी। इसकी लम्बाई 100 किमी. तथा चौड़ाई पूर्वी तथा पश्चिमी किनारों पर 40 किमी एवं बीच में 225 किमी तक पायी जाती है। इस श्रेणी की औसत ऊंचाई 3,100 से 3,700 मी तक पायी जाती है। इस श्रेणी की औसत ऊंचाई 3,100 से 3,700 मीं तक है एवं शीत कटिबन्धीय जलवायु के कारण इस पर वनस्पतियों का पूर्ण अभाव पाया जाता है। यह श्रेणी बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों तथा उत्तर दिशा में भू-आवेष्ठित झीलों से निकलने वाली नदियों के बीच जल विभाजक की भूमिका निभाती है।
हिमालय तीन समानांतर पर्वत श्रंखलाओं में अवस्थित है जो पश्चिम में सिंधु गार्ज से पूर्व में ब्रह्मपुत्र गार्ज तक विस्तृत है। कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक हिमालय पर्वत श्रंखला का विस्तार 2500 किमी. है। इस पर्वत शृंखला की पूर्व में चौड़ाई 150 किमी. तथा पश्चिम में 500 किमी तक है। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से हिमालय पर्वत श्रेणी को तीन वृहत् भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
महान (वृहत्) अथवा आंतरिक हिमालय
महान अथवा आन्तरिक हिमालय ही हिमालय पर्वतमाला की सबसे प्रमुख तथा सवोच्च तथा सर्वोच्च श्रेणी है, जिसकी लम्बाई उत्तर में सिंधु नदी के मोड़ से पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक 2,500 किमी. है। इसकी चौड़ाई 120 से 190 किमी. तक तथा औसत ऊंचाई 6,100 मीं. है। अत्यधिक ऊंचाई के कारण हिमालय साला भर बर्फ़ से ढंका रहता हैं, अतः इसे हिमाद्रि भी कहते हैं। इस श्रेणी में विश्व की सर्वोच्च पर्वत चोटियाँ पाई जाती हैं, जिनमें प्रमुख हैं - माउण्ट एवरेस्ट (8,848 मी.), कंचनजंगा (8,598 मीं.), मकालू (8,481 मीं.), धौलागिरी (8,172 मी.), मनसालू (8156 मी.), नंगा पर्वत (8,126 मीं.), अन्नापूर्णा (8,078 मी.), गोवाई थान (8,013 मी.), नन्दा देवी (7,817 मी.), नामचाबरवा (7,756 मी.), हरामोश (7,397 मी.), आदि। इस श्रेणी में उत्तर पश्चिम की ओर जास्कर श्रेणी के उत्तर-दक्षिण में देवसाई तथा रूपशू के ऊंचे मैदान मिलते हैं। सिन्धु, सतलुज, दिहांग, गंगा, यमुना तथा इनकी सहायक नदियों की घाटियाँ इसी श्रेणी में स्थित है।
लघु अथवा मध्य हिमालय श्रेणी
यह महान हिमालय के दक्षिण के उसके समानान्तर विस्तृत है। इसकी चौड़ाई 80 से 100 किमी. तक औसत ऊंचाई 1,828 से 3,000 के बीच पायी जाती है। इस श्रेणी में नदियों द्वारा 1,000 मीं. से भी अधिक गहरे खड्डों अथवा गार्जों का निर्माण किया गया है। यह श्रेणी मुख्यतः छोटी-छोटी पर्वत श्रेणियों जैसे - धौलाधार, नागटीवा, पीरपंजाल, महाभारत तथा मसूरीकासम्मिलित रूप है। इस श्रेणी के निचले भाग में देश के प्रसिद्ध पर्वतीय स्वास्थ्यवर्द्धक स्थान - शिमला, मसूरी, नैनीताल, चकराता, रानीखेत, दार्जिलिंग आदि स्थित है। वृहत तथा लघु हिमालय के बीच विस्तृत घाटियां हैं जिनमें कश्मीर घाटी तथा नेपाल में काठमांडू घाटी प्रसिद्ध है। इस श्रेणी के ढालों पर मिलने वाले छोटे-छोटे घास के मैदानों को जम्मू-कश्मीर में मर्ग (जैसे-सोनमर्ग, गुलमर्ग आदि) तथा उत्तराखण्ड में बुग्याल एवं पयार कहा जाता हे।
उप हिमालय या शिवालिक श्रेणी
यह हिमालय की सबसे दक्षिणी श्रेणी है एवं इसको ‘वाह्म हिमालय’ के नाम से भी जाना जाता है। यह हिमालय पर्वत की दक्षिणतम श्रेणी है जो लघु हिमालय के दक्षिण में इसके समानांतर पूर्व-पश्चिम दिशा में फैली हुई है। इसकी औसत ऊंचाई 900 से 12,00 मीटर तक औसत चौड़ाई 10 से 50 किमी है। इसका विस्तार पाकिस्तान के पोटवार पठार से पूर्व में कोसी नदी तक है। गोरखपुर के समीप इसे डूंडवा श्रेणी तथा पूर्व की ओर चूरियामूरिया श्रेणी के स्थानीय नाम से भी पुकारा जाता है। यह हिमालय पर्वत का सबसे नवीन भाग है। लघु तथा वाह्म हिमालय के बीच पायी जाने वाली विस्तृत घाटियों को पश्चिम में ‘दून’ तथा पूर्व में ‘द्वार’ कहा जाता है। देहरादून, केथरीदून तथा पाटलीदून और हरिद्वार इसके प्रमुख उदाहरण है।
हिमालय पर्वत श्रेणियों की दिशा में असम से पूर्व से उत्तर पूर्व हो जाती है। नामचाबरचा के आगे यह श्रेणियाँ दक्षिणी दिशा में मुड़कर पटकोई, नागा, मणिपुर, लुशाई, अराकानयोमा, आदि श्रेणियों के रूप में स्थित हैं जो भारत एवं म्यान्मार के मध्य सीमा बनाती है।
शिवालिक को जम्मू में जम्मू पहाड़ियाँ तथा अरुणाचल प्रदेश में डफला, गिरी, अवोर और मिशमी पहाड़ियों के नाम से भी जाना जाता है। अक्साईचीन, देवसाई, दिषसंग तथा लिंगजीतांग के उच्च तरंगित मैदान इन पर्वतों के निर्माण से पहले ही क्रिटेशश काल में बन चुके थे जो अपरदन धरातल के प्रमाण हैं।
उत्तर का विशाल मैदान
हिमालय पर्वत की उत्पत्ति के पश्चात उसके दक्षिण तथा प्राचीन शैलों से निर्मित प्रायद्वीपीय पठार के उत्तर में, दोनों उच्च स्थलों से निकलने वाली नदियों, सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, आदि द्वारा जमा की गई जलोढ़ मिट्टी के जमाव से उत्तर के विशाल मैदान का निर्माण हुआ है। इस मैदान को सिंधु-गंगा ब्रह्मपुत्र का मैदान भी कहते हैं। यह मैदान धनुषाकार रूप में 3200 किमी. की लम्बाई में देश के 7.5 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र पर विस्तृत हैं। इसकी चौड़ाई पश्चिम में 480 किमी तथा पूर्व में मात्र 145 किमी है। प्रादेशिक दृष्टि से उत्तरी राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा तथा असम में इसका विस्तार हैं। इन मैदान को पश्चिमी तथा पूर्वी दो भाग में बांटा जाता है। पश्चिमी मैदान का अधिकांश भाग वर्तमान पाकिस्तान केसिन्ध प्रांत में पड़ता है, जबकि इसका कुछ भाग पंजाब व हरियाणा राज्यों में भी मिलता है। इसका निर्माण, सतजल, व्यास तथा रावी एवं इनकी सहायक नदियों द्वारा किया गया है। पूर्वी मैदान का विस्तान उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल राज्यों में हैं, जिसका क्षेत्रफल 3.57 लाख वर्ग किमी. है। इस मैदान में धरातलीय भू-आकृति के आधार पर बांगर तथा खादर नामक दो विशेष भाग मिलते हैं। बांगर प्राचीनतम संग्रहीत पुरानी जलोढ़ मिट्टी के उच्च मैदानी भाग हैं, जहाँ कभी नदियों की बाढ़ का पानी नहीं पहुंच पाता। खादर की गणना नवीनतम कछारी भागों के रूप में की जाती है। यहाँ पर प्रतिवर्ष बाढ़ का पानी पहुंचने एवं नयी मिट्टी का जमाव होने से काफ़ी ऊपजाऊ माने जाते हैं।
उत्तर के विशाल मैदान का प्रादेशिक विभाजन
उत्तर के विशाल मैदान को अनेक उपविभागों में बाँटा गया है, जिनमें प्रमुख हैं - पंजाब, हरियाणा का मैदान, राजस्थान का मेदान, गंगा का मैदान एवं ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी। गंगा के मैदान को हरिद्वार से अलीगढ़ तक ऊपरी दोआब तथा अलीगढ़ से इलाहाबाद तक मध्य दोआब के नाम से जाना जाता है। गंगा तथा यमुना दोआब के ऊत्तरी-मध्य उत्तर प्रदेश में स्थित भाग को रूहेलखण्ड का मैदान कहा जाता है। इस मैदान पर राम गंगा, शारदा तथा गोमती नदियाँ प्रवाहित होती है। उत्तर प्रदेश के उत्तरी पूर्वी भाग में अवध का मैदान स्थित हैं, जिसमें घाघरा,राप्ती तथा गोमती नदियाँ बहती है। गंगा के मैदान के उत्तरी-पूर्वी भाग में असम तक ब्रह्मपुत्र नदी का मैदान स्थित है, जो कि गारो पहाड़ी, मेघालय पठार तथा हिमालय पर्वत के बीच लम्बे एवं पतले रूप में फैला है। इसकी चौड़ाई मात्र 80 किमी. है। ब्रह्मपुत्र नदी घाटी की अवनतीय संरचना मे जमा किये गये अवसादों से इस मेदान में मियाण्डर, गोखुर झील, आदि का निर्माण हो गया है। इस मैदान के ढाल की दिशा दक्षिण-पश्चिम की ओर है तथा इसकी सीमा पर तराई एव अर्द्ध-तराई क्षेत्र मिलते हैं, जो दलदलो एवं सघन वनों से अच्छादित हैं
उत्तर के विशाल मैदान से सम्बन्धित दो प्रमुख शब्दावलियाँ हैं - भावर तथा तराई। ये अवसादी जमाव की विशेषताओं की परिचारक भी हैं।
भावर
यह क्षेत्र हिमालय तथा गंगा के मैदान के बीच पाया जाता है। जिसमें पर्वतीय भाग से नीचे आने वाली नदियों ने लगभग 8 किमी की चौड़ाई में कंकड़ों एवं पत्थरों का जमाव कर दिया है। यही गंगा मैदान की सबसे उत्तरी सीमा भी है। इस पथरीले क्षेत्र में हिमालय से निकलने वाली नदियाँ प्रायः विलीन हो जाती है और केवल कुछ बड़ी नदियों की धारा ही धरातल पर प्रवाहित होती हुई दिखती है।
तराई
यह क्षेत्र भावर के नीचे उसके समानान्तर स्थित है, जिसकी चौड़ाई 15 से 30 किमी तक पायी जाती हैं। भावर प्रदेश में विलीन हुई नदियों का जल तराई क्षेत्र में ऊपर आ जाता हे। यह वास्तव में निम्न समतल मैदानी क्षेत्र हैं, जहाँ नदियों का जल इधर-उधर फैल जाने से दलदलों का निर्माण हो गया है। वर्तमान में यहां की सघन वनस्पतियों को काटकर तथा दलदलों को सुखाकर कृषि कार्य के लिए उपयोगी बना लिया गया है।
बांगर
बांगर प्रदेश भी उत्तर के विशाल मैदान की एक विशेषता है। यह प्रदेश पुरानी जलोढ़ मिट्टी का बना होता है जहां नदियों की बाढ़ का जल नहीं पहुंचता है। इस प्रदेश में चूनायुक्त संग्रथनों की अधिकता होने के कारण यह कृषि के लिए अधिक उपयुक्त नहीं होता है। पंजाब में मिलने वाले बांगर को धाया कहा जाता है।
खादर
बांगर के विपरीत खादर प्रदेश में नदियों की बाढ़ का जल प्रतिवर्ष पहुंचता है। इस प्रदेश का निर्माण नवीन जलोढ़ मिट्टी द्वारा होता है क्योंकि बाढ़ के जल के साथ नवीन मिट्टी यहां प्रति वर्ष बिछती रहती है। यह प्रदेश कृषि के लिए अत्यधिक उपयुक्त होती है। पंजाब में मिलने वाले खादर को ‘बेट’ कहा जाता है।
डेल्टा
उत्तरी विशाल मैदान में गंगा तथा सिंधु नदी के डेल्टा मिलते हैं। गंगा का डेल्टा राजमहल की पहाड़ियों में सुन्दरवन के किनारे तक 430 किमी की लम्बाई में विस्तृत है। इसकी चौड़ाई 480 किमी है। सिंधु नदी का डेल्टा 960 किमी लम्बा और 160 किमी चौड़ा है।
प्रायद्वीपीय पठारी भाग
गंगा के विशाल मैदान के दक्षिण से लेकर कश्मीर से कन्याकुमारी तक त्रिभुजाकार आकृति में लगभग 16 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र पर प्रायद्वीपीय पठारी भाग फैला हुआ है। यह भाग दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उड़ीसा, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु एवं केरल राज्यों में फैला है। यह देश का सर्वाधिक क्षेत्रफल वाला तथा प्राचीन भौतिक प्रदेश है। यह देश का सर्वाधिक क्षेत्रफल वाला तथा प्राचीन भौतिक प्रदेश है। इस पर प्रवाहित होने वाली नदियों ने इसका कई छोटे-छोटे पठारों में विभाजित कर दिया है। इसकी लम्बाई राजस्थान से कुमारी अन्तरीप तक लगभग 1,700 किमी. तथा गुजरात से पश्चिम बंगाल तक चौड़ाई 1,400 किमी है। इस पठार की औसत ऊँचाई समुद्र तल से 600 मीटर तक है। इसकी उत्तरी सीमा पर अरावली, कैमूर तथा राजमहल पहाड़ियाँ स्थित है। पूर्व में पूर्वी घाट तथा पश्चिम में पश्चिमी घाट पहाड़ी इसकी सीमा बनाते हैं। यह क्षेत्र विच्छिन्न पहाड़ियों, शिखर मैदानों गभीरकृत, संकरी एवं अधिवर्धित घाटियों, शृंखलाबद्ध पठारों, समप्राय मैदानों एवं अवशिष्ट खण्डों का एक प्राकृतिक भूदृश्य है। पूर्वी एवं पश्चिमी घाट का मिलन जिस स्थान पर होता है, वहां अन्नामलाई पहाड़ियाँ स्थित है। नर्मदा नदी के उत्तर में मालवा पठार स्थित है। यह पठार लावा निर्मित होने के कारण काली मिट्टी का समप्रायः बन गया है, जिसका ढाल विशाल मैदान की ओर है। इस पर बेतवा, पार्वती, नीवज, काली सिन्ध, चम्बल तथा माही नदियाँ बहती है। मालवा पठार की उत्तरी तथा उत्तरी पूर्वी सीमा पर बुन्देलखण्डतथा बघेलखण्ड के पठार स्थित हैं जबकि कैमूर तथा भारनेर श्रेणियों के पूर्व में बघेलखण्ड का पठार है। इस पठार के उत्तर में सोनपुर पहाड़ियाँ तथा दक्षिण में रामगढ़ की पहाड़ियाँ स्थित है।
समुद्रतटीय मैदान
दक्षिण के प्रायद्वीपीय पठारी भाग के दोनों ओर पूर्वी घाट तथा पश्चिमी घाट पर्वतमालाओं एवं सागर तट के बीच समुद्रतटीय मैदानों का विस्तार है। यह तटीय मैदान देश के अन्य प्राकृतिक विभाग से स्पष्ट भिन्नता रखता है। स्थित के आधार पर इन्हे पश्चिमी तथा पूर्वी तटीय मैदानों में विभाजित किया जाता है।
पश्चिमी समुद्र तटीय मैदान का विस्तार गुजरात में कच्छ की खाड़ी से लेकर कुमारी अन्तरीप तक पाया जाता है। इसकी औसत चौड़ाई 64 किमी. है। इस मैदान की सर्वाधिक चौड़ाई नर्मदातथा ताप्ती नदियों के मुहानों के समीप 80 किमी तक मिलती है। इस मैदान का ढाल पश्चिम की ओर अत्यधिक तीव्र हैं, जिस पर तीव्रगामी एवं छोटी नदियाँ प्रवाहित होती है। इस मैदान को पाँच उपखण्डों में विभाजित किया गया है:
- कच्छ प्रायद्वीपीय तटीय मैदान जो कि शुष्क एवं अर्द्धशुष्क रेतीला मैदान है। इसके मध्य में गिरनार पहाड़ियाँ स्थित हैं।
- गुजरात का मैदान, जिसका विस्तार कच्छ एवं सौराष्ट्र के पूर्व में हैं। इस पर माही, साबरमती, नर्मदा तथा ताप्ती नदियाँ प्रवाहित होते हुए अरब सागर में मिलती हैं।
- कोंकण का मैदान दमन से गोवा तक 500 किमी लम्बा हैं। इस पर साल, सागौन आदि के वनों की अधिकता हैं।
- कनारातटीय मैदान गोवा से मंगलोर तक पाया जाता है। इसका निर्माण प्राचीन कायान्तरित शैलों से हुआ है। इस पर बालुआ स्तूपों का जमाव पाया जाता है। यह तट गरम मसालों, सुपारी, केला, आम, नारियल, आदि की कृषि के लिए प्रसिद्ध हैं।
- मालाबार तटीय मैदान केरल का तटीय मैदान हैं, जो कि मंगलोर से कन्याकुमारी तक 500 किमी की लं. में फैला है। इस पर लैगून (कयाल) नामक छोटी-छोटी तटीय झीलें पायी जाती हैं। इस मैदान के तटीय भागों में मत्स्ययन किया जाता है।
पूर्वी समुद्र तटीय मेदान पश्चिम बंगाल से लेकर कुमारी अन्तरीप तक मिलता है। इसकी चौड़ाई पश्चिमी तटीय मैदान की अपेक्षा अधिक हैं। इस मैदान पर प्रवाहित होने वाली नदियों-महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि ने विस्तृत डेल्टा का निर्माण किया है। इस पर चिल्का तथा पुलीकट जैसी विस्तृत लैगून झीलें भी पायी जाती हैं। इस मैदान के उत्तरी भाग को उत्तरी सरकार तथा दक्षिण भाग को कोरामण्डल तट के नाम से जाना जाता है। इसके तीन प्रमुख उप विभाग हैं:
- उत्कल का मैदान जो कि उड़ीसा तट के सहारे लगभग 400 किमी की लम्बाई में फैला है। इस मैदान पर महानदी का डेल्टा, चिल्का झील तथा विशाखापट्नम बन्दरगाह स्थित हैं।
- आन्ध्र का मैदान आन्ध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्र में स्थित हैं जिस पर गोदावरी एवं कृष्णा नदियों ने अपने डेल्टा का निर्माण किया है। इन दोनों डेल्टाओं के बीच कोलेरू झील स्थित हैं।
- तमिलनाडु के मैदान का विस्तार तमिलनाडु तथा पाण्डिचेरी के तटीय क्षेत्र में हैं। पुलीकट झील से कुमारी अन्तरीप तक इसकी लम्बाई 675 किमी है। इसकी औसत चौड़ाई 100 किमी है। पुलीकट एक लैगून झील है जिसके आगे श्रीहरिकोटा द्वीप स्थित है। यह मैदान सबसे लम्बा है।